मौन
मौन
शब्द सदा शास्वत नहीं रहते
मौन की भी अपनी भाषा है
मौन से उपजता जो हाहाकार हैं
भेद देता है सभी नासूरों क़ो
दुबारा से हरा होने के लिए
उनसे रिसते लहूँ से दुर्गंध आती है
फैल जाता है हवा में ज़हरीला करने के लिए
सभी के हृदय में वो आग
चाहै तो भस्म कर सकती है
निशब्द होना भी एक सायरन हैं
बड़ी तबाही के लिए
अक्सर लोग सन्नाटे की बातें करते हैं
उन्ही सन्नाटों से उपजा ये मौन हैं
मेरे हृदय से उठता ये नाद
पहुँचता तो है कहीं
शायद सरहदों तक गूंज जाता है
अनभिज्ञ रहना बड़ी कोई बात नहीं
चीजों से भागना तो रवायत है
अर्ध सत्य को परिपूर्ण ही तो करना नहीं
मौन अच्छा है
अपनी बातों को अंजाम देने के लिए।