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Amit Kumar

Abstract

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Amit Kumar

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मौन

मौन

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वो चला गया

उसे जाना ही था

ऐसा कहने वालों से

मैं सख़्त ख़िलाफ़ भी हूँ

नाराज़ भी हूँ


किन्तु मेरा मौन

उन्हें कुछ रास नही आ रहा

शायद वो मेरे मौन में

अपनी बातचीत के

कुछ उचित शब्द


ठूसने की फ़िराक में है

मैं बेबस हो सकता हूँ

मज़बूर हो सकता हूँ

किंतु लाचार बनाओगे

तो वो लाचारी असल मे


तुम्हारी अपनी ही होगी

जो मुझ पर उसी तरह

थोपी गई होगी जिस तरह

तुमने उसके हुनरमंद वज़ूद को

एक बेज़ान लाश में


तब्दील कर दिया है

उसका जाना कोई अर्थ

रखता हो शायद

लेकिन उसका मौन यूँ


एक दिन तुम्हें

ज़रूर खलेगा 

वो तुम्हें रुलाएगा

तड़पायेगा सतायेगा उम्रभर

हो सकता है 


वो आसान मौत मर गया

लेकिन तुम आसान कुछ भी

हासिल नही कर सकोगे

जो कलाकार एक सदाबहार

सद्भावना का परिचायक रहा हो


वो अचानक अवसादग्रस्त हो जाये

तो कौन यकीन करेगा

उसका मूक बने रहना

जाने कितनों को भीतर तक

तोड़कर रख देगा


झकझोर कर रख देगा

जाने क्या कर देगा

जो उनके बेज़ान 

ज़िस्म में कुछ सांस फूंक देगा।


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