मैं उतना उड़ना सीखूंगी
मैं उतना उड़ना सीखूंगी
तुम जितना मुझे गिराओगे,
मैं उतना उड़ना सीखूंगी,
तुम जितने शूल बिछाओगे,
मैं पुनः सम्भलना सीखूंगी।
तुम मुझे डराते हो पल पल,
कई जाल बिछाते हो पल पल,
और कभी तोड़ने हिम्मत मेरी,
आग लगाते हो पल पल।
तुम जितनी आग लगाओगे,
मैं बन नीर बरसना सीखूंगी,
तुम जितने शूल बिछाओगे,
मैं पुनः सम्भलना सीखूंगी।
तुम हर पल मेरी मंज़िल तक की,
राह डगर मुश्किल करते हो,
मैं दीप जलाकर चलती हूँ,
तुम बुझा अंधेरा करते हो,
तुम जितने दीप बुझाओगे,
मैं सूरज बन जलना सीखूंगी,
तुमसीखूंगी जितने शूल बिछाओगे,
मैं पुनः सम्भलना सीखूंगी।
तुम भरी वासना नज़रों से,
जो मुझको हाथ लगाते हो,
लगता है कि कुटिल घात से,
हर पल मुझे हराते हो,
तुम जितना मुझे हराओगे,
मैं ख़ुद से लड़ना सीखूंगी,
तुम जितने शूल बिछाओगे,
मैं पुनः सम्भलना सीखूंगी।
तुम मुझे बांधते बंधन में,
और पहरे कई लगाते हो,
मेरी सब पहचान मिटा,
सज्जा का सामान बनाते हो,
तुम जितना मुझे मिटाओगे,
मैं ख़ुद से बनना सीखूंगी
तुम जितने शूल बिछाओगे,
मैं पुनः सम्भलना सीखूंगी।
तुम जितना मुझे गिराओगे,
मैं उतना उड़ना सीखूंगी,
तुम जितने शूल बिछाओगे,
मैं पुनः सम्भलना सीखूंगी।
