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निखिल कुमार अंजान

Inspirational

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निखिल कुमार अंजान

Inspirational

मैं तुझमे बसता हूँ

मैं तुझमे बसता हूँ

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न मैं मंदिर में हूँ

न मैं मस्जिद में हूँ

न किसी चौराहे पर

न किसी चौबारे पर हूँ

फुर्सत से देख ऐ बंदे

मैं तेरी मन की दीवारों में हूँ


गली गली घूमता है ढूँढता मुझे

मैं कुदरत के नज़ारों में हूँ

ये सृष्टि बनाई है

हर जीव में मैंने जान बसाई है

लेकिन जब से तेरे जीवन में

मोह लालच और छल कपट

ने जगह बनाई है

तब से मैंने अपनी बनाई

इस दुनिया से दूरी बनाई है


लगता है डर अब मुझे भी इस जग से

कहीं सवाल न उठा दे मेरे ही अस्तित्व पर

बेशक मासूम की किलकारी में

हँसी मेरी आज भी गूँज रही

लेकिन तेरे इस घिनौने स्वरूप से

पलकें मेरी भींग रही


अफसोस मुझे होता है

क्यों मैंने ये सृष्टि रचाई

मैं तो तेरे मन मे बसता था

तुमने मुझे मंदिर में बिठा कर

धर्म की आड़ मे पाखंड रचाकर

देकर मेरे राम नाम की दुहाई

मेरे ही जग मे मेरी कर दी रुसवाई

क्यों मैंने ये सृष्टि रचाई...


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