मैं संन्यास लेना चाहता हूँ
मैं संन्यास लेना चाहता हूँ
जीवन भर संन्यास की साँस पर
चलता रहा हूँ प्रभु
कोई नहीं जानता
कि वो कौन है
और मैं कौन हूँ
रात से भरा हारमोनियम
तारों के सुनसान प्रकाश में
सदियों से बजता रहा है
चुपचाप
और चुपचाप ही मैं
मेरे संन्यास के शंख से
जन्म दर जन्म
जन्मा हूँ लगातार
ये दो हाथ
दो पांव लेकर
तेरी पूजा करने को
तुझ तक लौट आने को
जन्मता हूँ मैं
औरत की दर्द भरी चीखों की
चीलों पर बैठकर
धरती पर चला आता हूँ
बारबार क्यों ?
एकांत की तितलियाँ
बैठी रही बस
मेरे हर जन्म के आंगन में
मुझ देहरूपी अंगरखे पर
भूखी-प्यासी
तेरे दर्शन की अरदासी
इधर हर बार तूं मिला तो
पर यह कहते हुए चला गया
कि ठहर अभी आता हूँ ..
और तब से ठहरा हुआ हूँ मैं
सदियों से देह में
प्रतीक्षा की तितली पकड़े
इधर
संन्यास के ललाट पर
हे प्रभु तूं
चंदन के तिलक-सा
उतर रहा है
अब तो तेरी पद्चाप
देह की दीवारों के बाहर
सुनाई देने लगी है !
लगता है
धन्य होने की मेरी प्रतीक्षा
शीघ्र पूर्ण होने को है
लगता है
तेरा जन्म होने को है
रातें जाग रहीं है मेरी
भिखारिन-सी
और मैं खड़ा हूँ
तेरी भिक्षा बना
तुझको अर्पित होने
देह के सभी दरवाजे खोले
अजानों में,अरदासों में
थकी सांसों में
दुनिया नहीं समझ सकती
मेरी भाषा
और तेरा उत्तर
दुनियां तो जिस्म की अंगीठी पर
पकती रोटी है
ये दुनिया सचमुच
बहुत छोटी है
हे प्रभु
मुझे अब दे
अभी दे
आज दे
तत्काल दे
यानि संन्यास दे !
