Ravidutt Mohta
Abstract
आत्मा
अंगूठी है
देह की
देह
किताब है
नेह की।
ठोकर
कुछ नहीं होता
मैं संन्यास ल...
मैं सचमुच कुछ...
कत्ल से भरी य...
होंठ मेरे कित...
अंगूठी
हिचकी
वे दो बांहें