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Ravidutt Mohta

Abstract

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Ravidutt Mohta

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मैं सचमुच कुछ करना चाहता हूँ..

मैं सचमुच कुछ करना चाहता हूँ..

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मैं चाहता हूँ

हवाओं में घुस कर

बाँसुरी बजाना

जल पर गिरकर

जल जाना

और अग्नि में कूदकर

भीग जाना चाहता हूँ मैं


चाहता हूँ मैं

सचमुच कुछ करना

आकाश को चूमना

उसे हँसाना, प्यार करना


मैं धरा पर कदम रखकर

आकाश का हाथ पकड़

लेना चाहता हूँ

और चाहता हूँ रोज

टहलना

धरती और आकाश के साथ

मैं सचमुच कुछ करना चाहता हूँ


कब्रिस्तानों में घुस कर

पूर्वजों के ललाट चूम लेना

धूं-धूं जलते शमशानों में शवों को

अपने आँसुओं से

बुझा देना चाहता हूँ


मैं मृत्यु को

एक पक्षी की तरह

इस धरा से उड़ा देना चाहता हूँ

मैं सचमुच कुछ करना चाहता हूँ



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