Ravidutt Mohta
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भूख को ठोकर लगी
भीख हो गयी
सुख को ठोकर लगी
सीख हो गयी।
ठोकर
कुछ नहीं होता
मैं संन्यास ल...
मैं सचमुच कुछ...
कत्ल से भरी य...
होंठ मेरे कित...
अंगूठी
हिचकी
वे दो बांहें
आत्मा