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Rati Choubey

Tragedy

4  

Rati Choubey

Tragedy

मैं नदी हूँ

मैं नदी हूँ

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मैं नदी हूं

सुनोगे मेरी आत्मकथा

कहां से मेरा हुआ है उदगम

कहां कहां जाती हूं मैं।

क्या जानते हो तुम ?


मैं और नारी एक समान

ज्ञात नहीं आदि अंत किसीको

शांत, रौद्र, प्रदूषित, सूखी कभी मैं

बहती ही जाऊं अपनी गति से मैं


युग से युग यूं बदल गए हैं

मैं तो रही सदा परिवर्तित

कभी व्यथित, कभी प्रसन्न मैं

बहती जाऊं सदा यूंही मैं


तट को यूंही काटती जाती मैं

करती निर्माण किनारों का मैं

मार्ग खोजती ,बहती जाती मैं


‌‌‌कभी लहराती हो प्रसन्न मैं

कभी उदास हो लूं मथरगति मैं

कभी उछलती बन बालिका मैं

कभी बन जाती शांत युवति मैं


सृजनशीला कहलाती मैं

गति मेरी लययुक्त संगीतमय

मै सुरमयी सी बनूं मनोहर सी


कोई कहे तटनि मुझको

कोई कहै नदियां मुझको

‌‌‌‌‌कोई कहै निर्झर सरिता' मुझको


कभी बनूं नृत्यांगना सी मैं

करती जाऊं जल में ताथैय्या में

हौले हौले बढ़ती कदमों से मैं


कभी बनूं दुल्हिन सी लजीली मैं

दर्शनिया बनी पर्यटको की भी मैं

वंदनीया बनती कर्मों से ही मैं


हो जाती दुनियांसी तब मैं

जब जन ही करते मरीन मुझे

पारदर्शिता। रखने ना दे मुझे


जूठन फैंके, कचरा फैंके मुझमें

पत्थरों की चोट बहती कभी

नाविकों चीर मुझे बढ़ जाते


पशु पक्षी खेत खलिहान

मुझको छूकर खिल ही जातै

यही है मेरा ' मान' बड़ा ही


पावन शीला, पूजनीया मैं

दर्शनीया, नयनतारा हूं मैं

प्रकृति‌ निर्मित हूं लुभावनी मैं


मैं तो हूं बहुनामधारिणी

ग़ंगा नाम से हूं अति विख्यात

‌‌‌यमुना, ब्रह्मपुत्र, पद्मा, मेघना

बनी अलकनंदा, भगीरथ,आदि

‌बहती मेरी की शाखाएं धरा पे


मैं ही नदी तुम्हारी

‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌मेरा आदि ना 'अंत' कहीं

‌‌‌मैं हूं अनादि अखंड ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ सदा

‌मेरा कोई सानी नहीं

क्योंकि मैं नदी हूं।


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