मैं लडूंगा
मैं लडूंगा
बटोर पृथ्वी की पूरी ऊर्जा को !
उठूंगा धीरे-धीरे जमीन से मैं।
जमीन पर गिरा आदमी भले हूं,
फिलहाल जर्जर हो चुकी
मेरी हाल ।
लड़खड़ाते कदमों से
नापने की है दूरी
जज्बा जिगर में।
पहुँच जाऊँगा मैं वहाँ
जहाँ जाना चाहूँगा वहाँ।
तमाम बाधाओं को पार कर,
मुसीबतों का सीना चीरकर
पहुँचूँगा वहाँ मैं।
बचाऊँगा खुद ही अपनी
नैया को डूबने से।
खुद ही बनूँगा खवैया मैं।
रख दूँगा मुसीबतों का
मैं घमंड धराशायी।
आततायियों का अब होगा अंत
ऊर्जाएँ उर में है अनंत।
आओ हम अब समस्याओं का
सामना करें।
मुसीबतों से हम मुकाबला करूं।
