मैं क्या करूँ ...
मैं क्या करूँ ...
मैं क्या करूँ ऐसा की ये रात ढ़ल जाए
अंधेरों के जंगल में कहीं सुबह पल जाए
मैं ढूंढता हूँ हर रोज कोई एक चेहरा
जहां खेलती हुई मुझको कोई ख़ुशी मिल जाए
तिनकों से बने घरों में कभी ख्वाब नहीं आते
टूटी हुई छतों से कभी कोई चाँद आ जाए
मैं क्या करूँ ऐसा की ये रात ढ़ल जाए।