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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा बाबा

Tragedy

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा बाबा

Tragedy

मैं कविता नहीं लिखता

मैं कविता नहीं लिखता

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मैं कविता नहीं लिखता हालात लिखता हूं,

मैं रमता नहीं सुनता और जज़बात कहता हूं।

कौन कहता कि वह नहीं रुकेगा,

वह क्रान्ती की शय में ही झुकेगा।

मोहब्बत के पन्नों में गालिब वही है,

नगमा जिसका गम-ए-बर्बाद है।।


मोहब्बत के सहरों में अफसाना वही है,

सजदा कर जिसका दिल-ए-बर्बाद है।।

 तुम्हें भुला दे,

जिन्दगी में ऐसी कोई शय नहीं।

आखिर मोहब्बत की जंग में ऐसी कौन सी चाल दूँ, कि

शय और मात दोनो ही मेरा मुकाम हो जाये।।


क्योंकि

जिन्दगी में हमने तमन्नाओं को खाक होते देखा है,

ऐतबार नहीं खुदा पर, मोहब्बत तो एक धोखा है।।

आखिर क्यों है मन्नतें खुदा से मेरी खातिर,

किसी फरियाद से तो अच्छा यह समझ ले कि

आखिर जिन्दा हूँ ऐ जिन्दगी मैं तेरी खातिर।।


मैं और मेरी तकदीर दोनों जुदा-जुदा हैं,

धड़कते दिल से दोनों का अपना-अपना गिला है।।

जिन्दगी कहती क्या तकदीर है ?

तकदीर कहती जिन्दगी में क्या मिला है।।


वीरानियों के साये में हर रंगत वेवफा है,

हँसी कहती क्या दर्द है,

और दर्द कहता क्या हँसी है,

जुदाई के आलम में दोनों फना-फना हैं।

एक तरफ मै हूं और एक तरफ मेरा मकां है।


तन्हाई के आलम मे दोनों ही गुनगुनाते हैं,

एक तरफ मेरी बन्दगी और मेरा नग्मा है,

मगर जिन्दगी में कोई सुनने बाला नहीं है।


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