मैं कविता हूं
मैं कविता हूं
मैं कविता हूँ
शुद्ध अंतर्मन में छिपे उद्गार
धर रूप शव्दों का
बाहर आ जाते
मैं कविता हूँ
जन्म मृत्यु से परे
अवतार धारणा का रूप प्रत्यक्ष
कब जन्म लेती
अवतरित होती हूं
मैं कविता हूँ
अवतरित होती शुक की भांति
खुद की मर्जी की स्वामिनी
दबाव से रहित
खुद ही अवतरित होती
कौन लिख सकता मुझे
मैं अनुभूति का विषय
दृश्य से अधिक अदृश्य
मैं कविता हूँ
शब्दों में तलाश मेरी
व्यर्थ का श्रम
शब्द तो काया है
मैं आत्मरूप
पृथक निज काया से।
