मैं जहां रहूं
मैं जहां रहूं
मैं जहां रहूं, मांगता रहूंगा जग की खैर,
प्रेम प्रीत में मन लगाऊं, बुरा बहुत बैर,
धरा जब हो हरीभरी, मिले मन प्रसन्नता,
धर्म कर्म में मन लगा, जग जाऊंगा तैर।
मैं जहां रहूं, मन में हो देश के प्रति प्रेम,
जहां भी जाऊं, पूछता रहूंगा कुशलक्षेम,
जब देश बढ़ेगा आगे, हो जाये मन प्रसन्न,
आएगा अगर कोई मिलने, मिलूंगा सप्रेम।
मैं जहां रहूं, हर जन की चाहूं खुशहाली,
उस दाता पर विश्वास, वो होता जग माली,
नहीं रहे कोई भूखा, सब के सब हो धनी,
हर बच्चे के मुख पर सदा रहे फिर लाली।
मैं जहां रहूंगा,कोई नहीं सोये वहां भूखा,
चहुं ओर वर्षा ही वर्षा, नहीं रहेगा सूखा,
किसान चले प्रसन्नचित होकर, निज खेत,
चेहरे पर मुस्कान हो, नहीं रहे कोई रूखा।
मैं जहां रहूं धरा पर, मिलता रहे सदा मान,
एक दूजे का साथ दे, कोई ना करे अपमान,
सुख-दुख यूं ही चलते रहे, जीवन के रंग,
ज्ञान मिले हर जीव को, ना रहे जन अज्ञान।
मैं जहां रहूं वहां, मिलते रहे शुभ समाचार,
हर जन मुझसे मिलने आये, बढ़ जाये प्यार,
खुशी खुशी कट जाये, जीवन की ये घड़ियाँ ,
खुशहाली सबको मिले, यहीं जीवन आधार।
मैं जहां रहूं, अन्न और जल के मिले भंडार,
शुद्ध जिंदगी बीते यूं, खाने को हो शाकाहार,
कोई पाप का भागी न हो, जीवन हो मिसाल,
हर जिंदगी प्रसन्न रहे, होती रहे जय जयकार।
मैं जहां रहूं, वहां एक बार आ जाये रामराज,
अपनी अपनी हिम्मत से,करते रहे सभी काज,
मरने से पहले दुआ करे, फिर मिले जिंदगानी,
मां बाप गुरु सेवा करे, हो जन जन पर वो नाज।।
