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Alok Singh

Romance

3  

Alok Singh

Romance

मैं ... हूं  ही नहीं

मैं ... हूं  ही नहीं

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कई दिनों से फूलों में महक है ही नहीं 

मैं हूं ...पर आजकल मैं ... हूं ही नहीं,

मैं गुनगुनाता था  

कभी बन साज तो कभी राग

अब आवाज हूं ,शब्द हूं ही नहीं,

जो लगाती थी, तुम आँखों में काजल 

लबों को रख देती थी, किसी कागज 

और सही करती थी, लालिमा होठों की 

बताओ 

निहारिती थी आईंने में छवी किसकी ?

मैं भर लेता था, बाहों में ज़जबातों को 

मैं चूम लेता था, तुम्हारे हाथों को 

अब तो सिर्फ ख्वाब हैं 

हकीकत है ही नहीं, 

तुम पास हो पर पास हो ही नहीं,

कई दिनों से फूलों में महक है ही नहीं 

मैं हूं ...पर आजकल मैं ... हूं ही नहीं। 


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