मैं गीत विरह का क्यूँ गाऊँ ?
मैं गीत विरह का क्यूँ गाऊँ ?
चुभते शूलों से क्या ! कहूँ
खिलते फूलों से क्या ! कहूँ
पतझड़ क्या ! मेरी पीड़ा सुनेगा
सावन के झूलों से क्या !कहूँ,
अपनी गुन-गुन की धुन में
भँवरे क्या ! मेरा गीत सुनेंगें,
अपनी कल-कल की धुन में
झरने आखिर !
मेरे चित की क्या ! सुनेगें,
सूरज भी उग कर ढलेगा
चँदा भी आकर निकलेगा
काली अधियारी रातों में
तारों का भी झुरमुट मिलेगा।
व्रत-जप-तप भी मैं क्या ! करूँ
मन्नत के धागे क्या ! बाधूँ
रहते हो तुम दिल में मेरे तो
जन्नत को फिर मैं क्या ! माँगू,
सब कुछ ही होगा समय पर
सभी तो होगें अपनी लय पर
फिर बताओ अपनी धुन को
किसको मैं आखिर ! समझाऊँ,
मैं, गीत विरह का क्यूँ गाऊँ ?
