STORYMIRROR

Anjneet Nijjar

Abstract

4  

Anjneet Nijjar

Abstract

मैं भारत की स्वतंत्र नागरिक

मैं भारत की स्वतंत्र नागरिक

1 min
54


मैं हूँ इस भारत की स्वतन्त्र नागरिक,

आओ कुछ बातें दिखलाऊँ,

किन किन बातों के लिए

हाए मैं छटपटाऊँ

क्या मनाऊँ जश्न मैं?

अपनी अधूरी भौतिक स्वतंत्रता पर

या पूरी असामाजिक परतंत्रता पर

संविधान की बेमिसाल अक्रियान्वित

समता पर

या समाज की नित बढती विषमता पर

क्या मनाऊँ जश्न मैं?

अपनी सौभाग्यशाली योग्यता पर

या उसको कूड़े में डाल देने वाली

राजनीतिक मूर्खता पर

अपनी परंपराओं की महानता पर

या उसे बेड़ियों में बदल चुकी

अमानुषता पर

क्या मनाऊँ जश्न मैं?

खेल के मैदानो को बिल्डिंगों में बदल देने वाली नीतियों पर

या रोजी-रोजगार के लिए रोज परीक्षा देते

छटपटाते युवाओं पर

युवाओं को गुमराह करते नेताओं पर,

समाज को ही खोखला कर रहे समाजिक कार्यकर्ताओं पर

क्या मनाऊँ जश्न मैं?

मैं नही छटपटाती,

उस स्वर्ग के लिए जो जीते जी नहीं है

मैं नही छटपटाती

उस दिखावटी धर्म के लिए

जिसकी परिभाषा अधर्मी देते हैं

मैं नही छटपटाती

अपनी गलतियों के लिए भी

क्योंकि बिना इसके विषम समाज में

गुजारा नहीं है

मैं नही छटपटाती

खुद के लिए, क्योंकि होना न होना मेरा मान्य नही है,

और यह परिस्थिति भी सामान्य नही है,

केवल मेरे लिए,

मैं अपने उस नागरिक के लिए छटपटाती हूँ

जो शपथ लेने के बाद भी अब नागरिक नहीं है

मैं उस अनागरिक के बचे हुए नागरिक के

पुनर्जीवन के लिए छटपटाती हूँ

मैं छटपटाती हूँ

देश के ग्रंथों में जो लिखा है

जो होते दिख रहा है और जो छिपा होने से

नहीं दिख पा रहा है,

उन सभी के क्रियान्वित हो जाने के लिए,

मैं छटपटाती हूँ

मैं भारत की स्वतंत्र-नागरिक

अपनी बेजान हुई जा रही

स्वतंत्र-नागरिकता के लिए छटपटाती हूँ!!!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract