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Aishwariya Das

Tragedy

5.0  

Aishwariya Das

Tragedy

मै सही हूं।

मै सही हूं।

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290


कल मेरे साथ हादसा हुआ

जिस्म से ज़्यादा

रूह को दर्द हुआ ।

बिखरी ज़िन्दगी को समेट कर

जब मैंने घरवालों को बताया

लोक लज्जा में मेरे सम्मान को लपेट कर

भूल जा बेटा ,नहीं बोलना ,चुप्पी को समझाया।


जो मेरे साथ हुई हैवानियत

इसमें मेरा क्या दोष

मैं कहां ग़लत?

कल रात के अंधेरे से

अभी तो उभर भी ना पाई थी

लांछन के भेष में पड़ोसी सांत्वना देने आई थी।

आज की ताज़ा खबर से लेके

चाय पे चर्चा तक हर तरह मैं ही छाई थी।


कोई साथ नहीं देता सुना था

देख भी रही हूं।

डॉक्टर ने भी दया ना दिखाई

जैसे जैसे उसने दवाई लगाई,

"आज कल की लड़कियां "

मानो दवा की जगह नमक हो

जैसे वो हैवान सही

और बस मेरे लिए एक सबक हो।


दरोगा साहब तो बस

खोज रहे थे,

मेरा चरित्र का प्रमाण पत्र

देर से घ

र आती थी

या छोटे थे तुम्हारे वस्त्र।


वकीलों ने भी कोई कसर न छोड़ी,

कैसे खींचा तुमको, कैसे तुम्हारी कलाई मोड़ी,

भरी सभा में पांचाली जैसे

खींचते गए वह मेरी साड़ी।


राह चलते ताना तुम भी देते हो

यह आज कल की लड़कियां कहते हो।

कौन करेगा इससे शादी?

इज्जत पे कलंक,समाज की बरबादी।

लिबास ग़लत होगा,

तभी लड़कों ने देखा होगा

नशे में चूर होगी तू,

तभी तो मजबुर होगी तू।


ग़लत मेरे साथ हुआ

ग़लत मैं नहीं हूं।

पिछड़ी सोच है तुम्हारी,

मैं सही थी और सही हूं।


इतनी परवाह ना करो मेरी ,

नियति को नहीं ना सही

नियत को बदल तेरी ।

हादसा हो चुका है ,

अब जाने दो।

तन के घाव भरने लगे हैं

मन के भी भरने दो।

अब ज़िंदा बच गई हूं

तो मुझे जीने दो।

अब मुझे जीने दो।


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