बेरंग
बेरंग
सब कहते हैं
बड़ा ही बदनसीब हूं
बेरंग है दुनिया मेरी
हां सही पढ़ा आपने
नेत्रहीन हूं।
लेकिन मुझे कुछ
बात कहनी है।
लोगों के विचार पे
मुझे भी विशेष
टिप्पणी देनी हैं।
माना रंग नहीं दिखता।
माना रंग नहीं दिखता।
पर पक्षपात ना जानूं
काले गोरे में।
ना फर्क खून का
अपने गैरों में।
मैं नहीं जानता धर्म अलग अलग
कौन हिन्दू कौन मुसलमान है।
सुना है सब मज़हब कहते
सब एक और सब समान है।
वैसे दिखता नहीं
पर जानता हूं ।
लड़की स्कर्ट पहने या साड़ी।
देख उसको
चरित्र भांपना भूल भारी।
किसी स्वतंत्र सबला के
जीवन में झांकता नहीं हूं
किसी अबला की
पुकार सुन
"मुझे क्या कह के"
भागता नहीं हूं।
अंत में ,
आँखों में संवेदना,
लफ़्ज़ों में अफ़सोस है,
मेरी नज़र का नहीं,
आपके नज़रिए का दोष है।
