अधूरा अलविदा
अधूरा अलविदा
कुछ अधूरा रह गया है मेरा ,
कहां ? वहीं
जहां बारिश की बूंदों का के सहारे,
नीली झील के बांध को रोका नहीं
बस बहने दिया ।
निशब्द हो चुके अधरों को रोका नहीं
बस तेरा नाम कहने दिया ।
आज भी ढूंढ़ती हूं वहां
जो खोया था वापस मिल जाए।
कहीं तू मुझे दुआ में मांगे
और तेरी दुआ कबूल हो जाए।
आवाज़ दी थी तुझे ,
शायद तूने सुना नहीं ।
कैसे कह दूं अलविदा, तुझे से अलग राह तो
मैंने चुना ही नहीं।
लाख कोशिश की मना लूं
नासमझ इस दिल को
सुनता ही नहीं है ,
बोले ,मेरे लिए बस तू ही सही
यह अलविदा मुकम्मल ही नहीं है ।
थोड़ा वक्त और इतनी जो
इंतजार का जुल्म सही है।
यह किस्सा आज भी अधूरा है,
शायद मेरा एक हिस्सा तेरे से ही पूरा है।