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Aishwariya Das

Abstract

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Aishwariya Das

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जियो और जीने दो

जियो और जीने दो

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आज कल नारीवाद का बड़ा शोर है

समझने की कोशिश की तो

पता चला इसका रुख़ ही कहीं और है।


मैं आज की नारी हूं ,

मुझे अपना अधिकार चाहिए।

लेकिन जिन आधारों पे

मांग रहे यह नारीवादी मेरा हक़,

कुछ हासिल होगा ,मुझे तो है शक़।


मुझे ताकतवर दिखाने की जरूरत नहीं

मैं कभी कमज़ोर थी ही नहीं ।

मुझे सबला दिखाने की जरूरत नहीं ,

मैं कभी लाचार थी ही नहीं ।


ना छोटे वस्त्र से माडर्न असंस्कारी हूं ।

और ना साड़ी ,सूट में "ओहो बेचारी "हूं ।

दफ्फतर , पैसा, प्रोमोशन सब जरूरत है मेरी

अपनों की परवाह करना फितरत है मेरी ।

सक्षम हूं घर बनाने में

और घर चलाने में भी।


मेरा पुरूषों से कोई होड़ नहीं

मेरी बेहतरी के अलावा मकसद मेरा कोई और नहीं।

मेरे लिए कोई दरवाज़ा खोले

मुझे कोई सोने में तोले

मेरी शादी का कोई मोल दे

यह मैंने कब चाहा है।


समझो

आज़ाद पंछी हूं मैं

मेरा पिंजरा कोई कैसे खोल दे।


सुनो,

हक़ का नारा नहीं नारीवाद,

तुम जियो और जीने दो

बस यहीं ख़तम है

पूरी संवाद ।



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