Sandeep Panwar

Drama

5.0  

Sandeep Panwar

Drama

मासूम जिंदगी

मासूम जिंदगी

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छोटा था मैं 

छोटी थी मेरी उम्र 

टेढ़ी थी जिंदगी 

जाना नही था कोई शहर,


मैं निकला था घर से 

ढूंढने वो खुशी 

जंगल सा था सफर

बंजर थी जमीन,


फिर यूँ ही इस सफर में 

मेरे इम्तिहान बहुत हुए

चेहरों से जूझ जूझ कर

नकाबों के एहसास बहुत हुए,


वो शुरुआत थी  

मेरे इस सफर की 

जहाँ अंधेरी

रात से इस शहर में

दिखती आंखें बेबस सी,


दिल को चीरती हुई 

उन आंखों में भूख थी 

अपने बचपन की 

जहाँ खोया था उनका बचपन 

और माँ की ममता गुमसुम थी,


पर बहुत ढूंढा मैंने 

इस शहर में किरदार बहुत थे

इंसान कम इंसानियत पर

नकाब बहुत थे,


मैं हैरान था इन किरदारों से

जो परिंदे से उड़ते ऊँचे आसमानो में,

मैं घुमा दरबदर, 


न मिला वो शहर

न मिली वो खुशी 

छोटा था मैं 

मासूम थी मेरी जिंदगी...।


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