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VanyA V@idehi

Classics Inspirational

4  

VanyA V@idehi

Classics Inspirational

मापदंड

मापदंड

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‌राजनीति में कैसे दोहरे, 

मानदंड हैं सर्वत्र व्याप्त !


जनता के हैं दुख इसलिए, 

होते नहीं कभी भी समाप्त।।


मुखियाओं से यह जानकर, 

कुछ की कुछ बने बस बात।


दब जाते हैं जो इस तरह,

दुष्टों के बढ़ रहे हैं उत्पात।।


‌राजनीति में कैसे दोहरे, 

मानदंड हैं सर्वत्र व्याप्त !


जनता के हैं दुख इसलिए, 

होते नहीं कभी भी समाप्त।।


मुखियाओं से यह जानकर, 

कुछ की कुछ बने बस बात।


दब जाते हैं जो इस तरह,

दुष्टों के बढ़ रहे हैं उत्पात।।


जनता से कब वह पूछते, 

क्या हैं उसके ऐसे कष्ट।


समाधान क्या है ज़रा बताओ 

कैसे हों दुख दरिदर नष्ट।।


पता नहीं क्युं है बढ़ रहा,

लोगो मे ऐसा अति क्रोध। 


अपने आप बनते जा रहे, 

जगह जगह यह अवरोध। 


जगह जगह है अवरोध, 

समझ ना आये कुछ भी। 


अपनो का प्रतिकार करें, 

ना समझें कोई कुछ भी।


अनावश्यक लोग ले रहें,

कबका ये सब प्रतिशोध। 


दावानल जैसा फूट रहा,

रुक रुककर इनका क्रोध।


जनता से कब वह पूछते, 

क्या हैं उसके ऐसे कष्ट।


समाधान क्या है ज़रा बताओ 

कैसे हों दुख दरिदर नष्ट।।


पता नहीं क्युं है बढ़ रहा,

लोगो मे ऐसा अति क्रोध। 


अपने आप बनते जा रहे, 

जगह जगह यह अवरोध। 


जगह जगह है अवरोध, 

समझ ना आये कुछ भी। 


अपनो का प्रतिकार करें, 

ना समझें कोई कुछ भी।


अनावश्यक लोग ले रहें,

कबका ये सब प्रतिशोध। 


दावानल जैसा फूट रहा,

रुक रुककर इनका क्रोध।


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