मानव रूपी शैतान
मानव रूपी शैतान
मनहरण घनाक्षरी
मानवता शर्मसार, इज्जत हुआ है तार
इन जालिमों का सभी, अत्याचार देखिए।
यह कितने खूंखार, करते सीमा को पार
इन जाहिलों का सभी, संस्कार तो देखिए।
भेड़ियों के जैसा रूप, इनका यही स्वरूप
लोक लाज त्याग दिए व्यवहार देखिए।
कोई न इनको गम, इन्हें नहीं आता शर्म
करते रहते यह दुराचार देखिए।
मानव रूपी हैवान, ये दिखते हैं शैतान
मुंह ये काला करके, घूमते हैं देखिए।
बेहयाई करते हैं, महिला को छेड़ते हैं
सारी हया छोड़कर, घूरते हैं देखिए।
डर नहीं इन्हें कोई, मानवता गयी सोई
हर गाँव हर गली, मिलते हैं देखिए।
आओ करे प्रण हम, इन्हें छोड़े नहीं हम
सजा अब इनको दें, छिपते हैं देखिए।