रंग बदलती दुनिया
रंग बदलती दुनिया
रंग बदलती इस दुनिया में, कैसे जीवन सार लिखूँ।
बहन बेटियों की अब तो मैं, कैसे करुण पुकार लिखूँ।।
मानवता तो चीख रही है, धरती क्रंदन करती है।
नहीं सुरक्षित बहन -बेटियाँ, हर पल बेबस रहती हैं।
इनके जीवन को फिर तो मैं, बेबस औ' लाचार लिखूँ
रंग बदलती इस दुनिया में, कैसे जीवन सार लिखूँ।।
लोक लाज को त्याग दिए हैं, पाप कर्म ये करते हैं।
मिले अकेले कोई नारी, इसी ताक में रहते हैं ।
काँटो भरी जिंदगी उनकी, कैसे मैं तो हार लिखूँ।
रंग बदलती इस दुनिया में, कैसे जीवन सार लिखूँ।।
मानवरूपी यही भेड़िए, हवसी और शिकारी हैं।
शर्म नहीं आती है इनको, ये तो बस व्यभिचारी हैं।
मानव जीवन को धरती पर, कैसे मैं उपकार लिखूँ।
रंग बदलती इस दुनिया में, कैसे जीवन सार लिखूँ।।
