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Vikas Sharma

Tragedy

3  

Vikas Sharma

Tragedy

मानव होने को पहचान लो अब भी

मानव होने को पहचान लो अब भी

2 mins
313



कोरोना , लॉक डाऊन से ,

हम पार भी पा लेते ,

अर्थ व्यवस्थाएं –बनती –बिगड़ती

उसकी मार भी सह लेते ,


पर जो नफरत फुँकार रही है ,

अनंत पेट वाली है –उसको दफन ही रहने देते ,

सब निगल जाएगी –

गरीबी ,अशिक्षा सब से लड़ लेते


पर जो जहर घुला हैं साँसो में ,

जैसे बंद कपाट खुलें हों ,

तरस रहा था बाहर आने को विष –

नसों में और ख्यालों में ,


किसी की गलती को नहीं ढाँप रहा ,

मूर्खो की तो छोड़ो , मैं विद्वानो को नाप रहा ,


कोरोना तो छूने से ही होता है ,

ये धर्म वाइरस , वाहक गंदी मीडिया – विचारों से ही होता है


भाँप सको तो भाँप लो अब भी ,

मानव को मानव ही मारेगा

अपने मानव होने को पहचान लो अब भी।


बुद्धि से हम सदियों से बढ़ते आए हैं ,

प्रकृति के राज सुलझाते आए हैं ,

सवाल उठाते आयें हैं , कल्पनाएं गढ़ते आए हैं ,

हर मुश्किल से जूझ कर आगे बढ़ते आए हैं।


अरे! ढूंढ लो जीवन के मतलब को ,

अनंत की गुत्थी को सुलझा लो ,

मशीने तुमको नाप रही – उनसे आगे बढ़कर खुद को पा लो ,

गूढ़ रहस्य है जीवन के , हो सके तो इनको पा लो।


जानोगे तो , जानोगे की कम जाना ,

भरी पड़ी है ,दुनिया अचरज से , पाओगे तुमने –कम जाना

ज्ञान –विज्ञान ,दर्शन की बाते – पाओगे की अभी कभी कुछ ना जाना ,

आडंबर में फँसकर , मनुज तूने खुद को ना पहचाना।


रोक सको तो रोक लो इसको ,

मीडिया से दूरी बना लो ,

वरना

बदले को चलन चलेगा ,

ना राम , ना रहीम रहेगा ,

कोरोना भी डर भागेगा,

जब मानव –मानव को मारेगा।


भाँप सको तो भाँप लो अब भी ,

अपने मानव होने को पहचान लो अब भी।


   


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