मानव होने को पहचान लो अब भी
मानव होने को पहचान लो अब भी
कोरोना , लॉक डाऊन से ,
हम पार भी पा लेते ,
अर्थ व्यवस्थाएं –बनती –बिगड़ती
उसकी मार भी सह लेते ,
पर जो नफरत फुँकार रही है ,
अनंत पेट वाली है –उसको दफन ही रहने देते ,
सब निगल जाएगी –
गरीबी ,अशिक्षा सब से लड़ लेते
पर जो जहर घुला हैं साँसो में ,
जैसे बंद कपाट खुलें हों ,
तरस रहा था बाहर आने को विष –
नसों में और ख्यालों में ,
किसी की गलती को नहीं ढाँप रहा ,
मूर्खो की तो छोड़ो , मैं विद्वानो को नाप रहा ,
कोरोना तो छूने से ही होता है ,
ये धर्म वाइरस , वाहक गंदी मीडिया – विचारों से ही होता है
भाँप सको तो भाँप लो अब भी ,
मानव को मानव ही मारेगा
अपने मानव होने को पहचान लो अब भी।
बुद्धि से हम सदियों से बढ़ते आए हैं ,
प्रकृति के राज सुलझाते आए हैं ,
सवाल उठाते आयें हैं , कल्पनाएं गढ़ते आए हैं ,
हर मुश्किल से जूझ कर आगे बढ़ते आए हैं।
अरे! ढूंढ लो जीवन के मतलब को ,
अनंत की गुत्थी को सुलझा लो ,
मशीने तुमको नाप रही – उनसे आगे बढ़कर खुद को पा लो ,
गूढ़ रहस्य है जीवन के , हो सके तो इनको पा लो।
जानोगे तो , जानोगे की कम जाना ,
भरी पड़ी है ,दुनिया अचरज से , पाओगे तुमने –कम जाना
ज्ञान –विज्ञान ,दर्शन की बाते – पाओगे की अभी कभी कुछ ना जाना ,
आडंबर में फँसकर , मनुज तूने खुद को ना पहचाना।
रोक सको तो रोक लो इसको ,
मीडिया से दूरी बना लो ,
वरना
बदले को चलन चलेगा ,
ना राम , ना रहीम रहेगा ,
कोरोना भी डर भागेगा,
जब मानव –मानव को मारेगा।
भाँप सको तो भाँप लो अब भी ,
अपने मानव होने को पहचान लो अब भी।