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हरीश कंडवाल "मनखी "

Tragedy

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हरीश कंडवाल "मनखी "

Tragedy

माँ

माँ

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  अब जब भी गॉव जाता हूॅं 

  गाड़ी से नीचे उतरते ही 

  पानी की बोतल हाथ में लिए

  तुम मुझे महसूस होती हो मां । 


  किसी को रास्ते में, गाय चुगाते देख

  उनमें तुम्हारी अन्वार, झलकती है मां । 

  खेतों में पकी फसल काटते हुये देख

  उनमें तुम्हारी सूरत सी दिखती है मां । 


  घर के ऑंगन में पहॅुचते ही देहली में 

  खड़े होकर मुस्कराते हुए दिखती हो मां

  चारपाई में बैठते ही, सामने तस्वीर में 

  कुछ बोलने का अहसास सा होता है मां । 


  घर के ऑंगन में चावल फटकते हुए

  तुम्हारी चुड़ियों की खनक सुनायी देती है

  खाना खाते वक्त, रोटी लिये हुए हाथ में

  दो रोटी और खाले, यह सुनाई देता है मां । 


 रात को सोते समय, सिरहाने में खड़ी हो

 हाल चाल पूछकर, चितां व्यक्त करती हो

 सब ठीक होगा, यह विश्वास दिलाती हो

 थका होगा सो जा, ऐसा सुनाई देता है मां । 


 बैग में सामान रखते वक्त तुम दिखती हो पास

 ये भी ले जा, वो भी ले जा, यह है तेरे लिए खास

 सिर में जैसे हाथ रख दिया ऐसा होता अहसास

 बस ऐसा लगता है, लेकिन तुम नहीं हो मेरे पास। 



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