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सीमा शर्मा सृजिता

Inspirational

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सीमा शर्मा सृजिता

Inspirational

मां

मां

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मेरी तरह ढेरों किताबें

नहीं पढ़ी उसने 

मगर पढ़ी है जिंदगी 

बहुत होशियार है वो 

तभी तो झट से पढ़ लेती है 

मेरी आवाज से 

मेरे मन की व्यथा 

मेरे लाख मना करने पर भी

उगलवा ही लेती है 

मन की परतों पर

रची हुई अनकही कथा 

वो सब जानती है 

जो कहा गया वो भी 

जो नहीं कहा गया वो भी 

कल जिन राहों से वो गुजरी थी 

मैं चल रही हूं 

जिस सांचे में वो ढल चुकी है 

मैं ढल रही हूं 

जिंदगी के जिन जख्मों को 

उसकी नजरों से छुपाने की 

नाकाम कोशिश करते 

मैं सी रही हूं 

वो सी चुकी है 

जिंदगी के खट्टे -मीठे 

अनुभवों को कभी मुस्करा

तो कभी हो हताश  

मैं जी रही हूं 

वो जी चुकी है 

मैं भूल जाती हूं अक्सर ये सब 

मगर उसे सब याद है 

यकीं है एक दिन मैं भी 

पढ़ लूंगी जीवन को 

और बन जाऊंगी 

अपनी मां की तरह होशियार...... 

   


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