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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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माँ

माँ

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370


मंदिर हो, मस्जिद हो या हो गुरुद्वारा।

हर भगवान मुझे पहचानता है।

मेरी मां का बेटा कहकर पुकारता है।


आज मैंने कुदरत का करिश्मा देखा है ।

सितारों से जड़े आसमान में मां का दुपट्टा देखा है।


दुख के एक आंसू को मां

खुशियों के सौ आंसुओं में बदल देती है।

मां की दुआएं हर तकलीफ

शर्मसार कर देती है।


मां का हाथ जब मेरे हाथ में होता है।

तो हाथों की लकीरें बदल जाती है।

उसकी दुआओं से हर तकलीफ

शर्मसार हो जाती है।


हर मुसीबत से निकाल लाती है। 

मां साथ नहीं होती,

फिर भी जान जाती है।


माँ का साथ हो तो

दुश्मनों की जड़े हिल जाती है।

मां के एक शब्द से

दुश्मनी टूट जाती है।


उजाड़ सी हवेली थी जो अब तलक।

 मां के कदम पड़ते ही मंदिर हो गई ।

आंसू सूख गए थे जो कभी ।

 यूँ निकले कि गंगा बह गई।


 बुलंदियों को छुआ तो भी मां का साया था।

 सितारों से जड़ा आसमान मां के दुपट्टे जैसा था


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