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मिथलेश सिंह मिलिंद

Abstract

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मिथलेश सिंह मिलिंद

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माँ लौट आ माँ

माँ लौट आ माँ

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नींद नहीं आती माँ ,

इन रेशम वाली तकियों पर।

अब भी जैसे फिरती तेरी,

उँगली मेरी अंखियों पर।


तेरे बिन माँ घर का कोना,

सूना-सूना लगता है।

तेरी थपकी के सम्मुख हर,

उपवन बौना लगता है।


डर लगता है अब भी मुझको, 

माँ अपनी ही परछाँई से ,

हो सके तो लौटकर आओ न माँ ,

कांटो सा बिछौना लगता है।


अनायाश हँस पड़ता हूँ माँ मैं

बचपन वाली बतियों पर।

अब भी जैसे फिरती तेरी, 

उँगली मेरी अंखियों पर।


पापा की फटकारो से माँ,

मुझको कौन बचाएँगा।

मेरी सारी गलती को माँ,

आँचल में कौन छिपाएँगा।


डरता हूँ हर पल माँ कि,

गलती कोई न हो जाये,

मेरे हर दर्द पर माँ अब,

आँसू कौन बहाएँगा।


तेरी यादों का भ्रम माँ,

मेरी हर इक रतियों पर।

अब भी जैसे फिरती तेरी,

उँगली मेरी अंखियों पर।


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