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माँ की महिमा

माँ की महिमा

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माँ की महिमा

वही तो है माँ।

गुरू ही है माँ

शिक्षा भी देती है माँ

हर बच्चे की

छाया है माँ।


घुटनों के बल 

बच्चा चलता।

माँ को कितना

अच्छा लगता।

उंगली पकड़कर

खड़ा जब होता

माँ के दिल को 

सुकुन है मिलता।


अपने बल पर 

खड़ा जब होता

संभल न पाता

वहीं गिरता,

फिर उठता और

दो कदम चलता

फिर चलता और

आगे बढ़ता।

आगे बढ़ने में

फिर गिरता 

चोट लगे जब

फिर वो गिरता

ज़ोर - ज़ोर से 

बच्चा रोता।


चोट लगे जब

बच्चा रोता है 

माँ के दिल में

दर्द होता है।

माँ - बच्चों का 

यही रिश्ता है।

माँ की महिमा

का रिश्ता है।


जीवन भर 

ऐसे चलता है

माँ के कलेजे

का टुकड़ा है।

बेटा है या बेटी है

भेदभाव कभी 

नहीं रहता है।

माँ की बस

संतान होता है।


माँ का फर्ज़

यही होता है।

जो जीवन भर

चलता रहता है...।।


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