माँ-बाप
माँ-बाप


माँ-बाप को समझना कहाँ आसान होता है
उनका साया ही हमपर छत के समान होता है
प्रेम का बीच जिस दिन से माँ के पेट में पलता है
बाप के मस्तिष्क में तब से ही वो धीरे-धीरे बढ़ता है
पहले दिन से ही बच्चा माँ के दूध पर पलता है
पर पिता के मेहनत से माँ के सीने में दूध पनपता है
सूने घर में कोई बालक जब किलकारी भरता है
उसके मधुर स्वर से ही तो दोनों को बल मिलता है
पकड़ कर उंगली जिन हाथों ने चलना तुझको सिखलाया
अपने हिस्से का बचा निवाला जिसने तुझको खिलाया
सुबह ना देखी रात ना जानी हर मौसम की मार सही
एक तेरी ही हठ के कारण दोनों की हर चाह अधूरी रही
तेरी शिक्षा के खातिर उन्होंने जाने कितने कष्ट सहे
उम्र भर की पूंजी लुटाई बिना एक भी शब्द कहे
जब-जब तूने ठोकर खाई हिम्मत हार के बैठ गया
मात-पिता ने स्नेह से अपने डाला तुझ में जोश नया
बड़ा हुआ तू समझ ना पाया किसने तुझको बनाया है
किसने खून जलाया अपना किसने दूध पिलाया है
तू जीते जीवन में हरदम जो इस कारण सब हारे थे
आज उन्हीं को तेरी आस थी जो कल तेरे सहारे थे
तू अपनी दुनिया में खोया तू कभी ना उनकी बात सुनी
अपनी मर्ज़ी से अपनी खातिर जो भी चाहा राह चुनी
जिससे तूने भरी सभा में अपरिचित सा व्यवहार किया
ये वही स्तम्भ है जिसने तेरा हर सपना साकार किया
आज जहां तू खड़ा हुआ है जो ऊंचाई पायी है
किसी ने अपना जीवन खपाकर तेरी सीढ़ी बनाई है
आज वो आँखें सुख चुके है जो तेरे दर्द में रोते थे
होंठ वो अब सुने रह गए जो चूम के तुझको सोते थे
तेरे जाने के बाद भी घर में छ: रोटी ही पकती है
थाली परोसे माँ तुम्हारी राह ताकती रहती है
जाने कब से चुप है पापा अब वो बात नहीं करते
तेरी किसी निशानी को अब अपने पास नहीं रखते
अब भी तेरे कमरे की होती रोज़ सफाई है
दीवारों में टंगी हैं अब भी जो चित्र तूने बनाई है
बस तेरी ही यादों में अब दोनों खोए रहते हैं
पर दोनों ही एक दूजे को दर्द ना अपना कहते हैं
तू भी जानेगा दर्द को इनके ऐसा भी एक दिन आएगा
बीच भँवर में साथ तुम्हारा जब छोड़ के बच्चा जाएगा।