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SIJI GOPAL

Tragedy

5.0  

SIJI GOPAL

Tragedy

लकीर

लकीर

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नोटों में तुलता ज़मीर,

महलों से कुचला कुटीर,

उस पार अमीर, इस पार फकीर हूँ मैं..

एक बदनसीब लकीर हूँ मैं !


राजनीति की जागीर,

सरहदों का शहीद वीर,

एक ही धरा की माटी को काटता चीर हूँ मैं..

एक बेबस लकीर हूँ मैं !


बंटवारे का प्यासा वज़ीर,

नफ़रत में बहता नीर,

रंग, जात-पात, धर्म में बंटता शरीर हूँ मैं..

एक खून भरी लकीर हूँ मैं !


समाज की जंजीर,

रूढ़ीवादी का प्राचीर,

बंधक नारी,और मुक्त नर की तकदीर हूँ मैं..

एक मर्यादा की लकीर हूँ मैं !


दोस्ती में रंगा अबीर,

प्रेम पथ का राहगीर,

दिलों के तार को जोडे़,

आशा की तस्वीर हूँ मैं..

एक खुशनसीब लकीर हूँ मैं !


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