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Writer Prakhar

Tragedy

4.7  

Writer Prakhar

Tragedy

लिखना चाहता हूं मैं एक कविता

लिखना चाहता हूं मैं एक कविता

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लिखना चाहता हूं मैं एक कविता

पर न जाने क्यों मुझे शब्द नहीं मिलते हैं।


भाव भी है भाषा भी 

मन में कुछ लिखने की आशा भी 

पर कितना कठिन है यह

सोचने को है बहुत कुछ

पर लिखने को शब्द नहीं मिलते हैं।


भावनाएं भी है और है कल्पनाएं भी

उमंग और उत्साह भी

कितना जटिल है यह

 देखा भी है बहुत कुछ

पर उकेरने को रंग नहीं मिलते हैं।


साथ हंसते भी हैं और रोते भी 

वे साथ मिलकर सोते भी 

कितना अजीब है यह

कहने को तो है लोग कई

पर चलने को संग नहीं मिलते हैं।


हवा भी है और खुला आसमान भी

उनका तो है अब यह जहान भी

कितना मुश्किल है यह

उड़ते हैं अब वह खुद भी

पर उड़ाने को पतंग नहीं मिलते हैं।


मोटर भी है अब और कार भी

हो गई है उनकी तो अब सरकार भी

कितना कमाल है यह

दौड़ते थे जहां वह बेतरह

रास्ते अब उनको वो तंग मिलते हैं।


तुकबंदी भी सही और राग भी

बातों में है वो आग भी

कितना गजब है यह

सोचो अगर इक बात नई 

तो लिखने को शब्द भी नये मिलते हैं।


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