लगन देख रहा हूँ
लगन देख रहा हूँ
चैन-ओ-सकूँ पाने की लोगों की मैं लगन देख रहा हूँ,
बहारें गूंज रही है चहूँ दिशाओं में वो गगन देख रहा हूँ।
मेरे आवाम को हुक्मरों ने लालच वश कर दिया बर्बाद,
हर शख्स है परेशाँ उनकी बढ़ती धड़कन देख रहा हूँ।
मेरे गुलिस्तान की आबो हवा में ये कैसा मंज़र है छाया,
बर्बाद हो रहा आदमी बिखरी लाशों पर कफ़न देख रहा हूँ।
हर शख्स है परेशाँ यहाँ अपनी हिफाज़त अब कैसे करें,
जद्दोजहद में लगें लोगों के छोटे -छोटे जतन देख रहा हूँ।
सारे जहान का दर्द कंधों पर ले निकले है कुछ लोग यहाँ ,
फ़र्ज की राह पर चल पड़े है वो खुशियाँ देने मन देख रहा हूँ।