ले चलो मुझे
ले चलो मुझे
चलो आज फिर ले चलना मुझे
वही पर जहां
धरती और आकाश मिलते हुए दिखते है
ले चलना जहां मेरे पैर ज़मीन पे तो होते है
पर धरती फिर भी पैरो में नहीं होती
देखेंगे आसमान को सिंदूरी से स्याह होते हुए
कितने नए रंग आसमान में भर जाएंगे
इस सिंदूरी से स्याह के बीच
दूर कहीं जल रहा होगा
मेरे और तुम्हारे
अनकहे शब्दों का अलाव
और कहीं बज रहा होगा
जीवन का संगीत
देखेंगे मैं और तुम
परिंदों को एक साथ घर लौटते
देखेंगे कुछ जवां
प्रेम कहानियों को जन्म लेते
तुम कुछ कहना नहीं
मैं समझ लुंगी
बस तुम्हारा मखमली स्पर्श उंगलियों की पोरों में लिए
तुम्हारी बातों की मिठास
होंठों में लिए
और तुम्हारे गुनगुनाती आंखों को
कानों से संभाल कर
हम विदा हो जाएंगे शाम से
तुम साथ रहना मेरे उम्र भर