लड़कियां
लड़कियां
लड़कियां--
बचपन से ही,
गुड्डे गुड़िया के खेल से ही,
मन ही मन जान लेती हैं
उनको अन्तर्मन से
आभास हो जाता है
एक दिन उन्हें यहाँ से जाना है।
मायके में वो मेहमान हैं,
एक दिन उन्हें यहाँ से जाना है।
ससुराल घर को कभी
अपना समझ नहीं पाती,
सालों साल उस घर में
रह कर उसे
पराया ही समझती हैं।
यह नहीं कि
वे जिम्मेदारी
नहीं निभाती पर
शिकायत उनके अधरों पर
सदैव रहती है।
लड़कियां--
दुविधा में फंसीं रह जाती है
यही कारण है
कभी प्रसन्न नहीं रह पाती।