'किसान'
'किसान'


सरहद पर सैनिक मरें, घर में मरें किसान।
जनसेवक बेशर्म बन,सोते चादर तान।।
सोते चादर तान, इन्ही के घर हैं भरते।
फिर इनको क्या पड़ी,रात- दिन निर्धन मरते।
निज सुत कर कुर्बान, अकिंचन होते गदगद।
पता चले जब पुत्र ,लड़ें नेता के सरहद।। ।
सरहद पर सैनिक मरें, घर में मरें किसान।
जनसेवक बेशर्म बन,सोते चादर तान।।
सोते चादर तान, इन्ही के घर हैं भरते।
फिर इनको क्या पड़ी,रात- दिन निर्धन मरते।
निज सुत कर कुर्बान, अकिंचन होते गदगद।
पता चले जब पुत्र ,लड़ें नेता के सरहद।। ।