मैं एक नारी हूँ...गीत
मैं एक नारी हूँ...गीत
औरत रही सदा ही बेवश,सहमी ग़म की मारी है
धधक रही है क्रोध अग्नि में,शोला है चिंगारी है।
देवी का दर्जा देकरके,सारे ही हक़ छीन लिए
समझ भोग की वस्तु उसे फिर,कितने अत्याचार किए।
अपनों ने भी साथ दिया कब अपनों से भी हारी है।
भरी सभा में देखो कैसे,नारी का अपमान किया
अग्नि परीक्षा दी नारी ने,नारी ने विषपान किया।
कच्ची कलियाँ कुचल आदमी,अब भी बना शिकारी है।
कन्या को धन समझ पिता ने,देखो कन्या दान दिया
माँगा गया दहेज,जलाया,ऐसा फिर सम्मान किया।
आज बनी बैठी है दुश्मन,ख़ुद नारी की नारी है।
जन्मदात्री बन कर वह बच्चों को दूध पिलाती है
ख़ुद भूखी रहकर भी देखो ,सबकी भूख मिटाती है।
सबकी सेवा ही करने में,कटी उम्र भी सारी है।
नारी को अधिकार मिला तब,गयी फर्श से अर्श तलक़
चकाचौंध थी सबकी आँखे,देखा सबने ही अपलक।
महिषमर्दिनी है ,रणचंडी,अरु शमशीर दुधारी है।