'किसान'
'किसान'
कभी सूखे पे रोये तो ,कभी बरसात पर रोये।
न क़ुदरत साथ देती है,,सदा इस बात पर रोये।
पड़ी पीली युवा बेटी , न पीले हाथ हो पाये ,
किसानी में हमेशा हम , विषम हालात पर रोये ।।
कड़ी हो धूप या सर्दी,करें मेहनत सदा ही हम।
न हसरत हो सकी पूरी ,इसी ज़ज़्बात पर रोये
लदा का कर्ज भी सर पर जो बढा ही जो चला जाता ,
हमें जो ज़िन्दगी देती रही उस मात पर रोये ।।
नहीं समझा हमें कोई , उमीदें भी नहीं बाक
ी ,
दिया सबने हमें जो , हम उसी आघात पर रोये ।।
गरीबी संगिनी बन कर , हमारे साथ रहती है ,
हम अपनी गमज़दा आँसू भरी बारात पर रोये ।।
नहीं इक पल सुकूँ पाया, न पायी नींद रातों की।,
विधाता से मिली जो दुख भरी सौग़ात पर रोये।
बदलते दिन महीने साल,पर क़िस्मत नहीं बदली,
रहा तम से घिरा जीवन,बुरे आफ़ात पर रोये।
भरा है "नीर"नयनों में,उगाते खेत में सोना।
मिलें हैं अनगिनत हमको,हरिक ज़र्बात पर रोये।।