"पर्यावरण एवं सामाजिक संवेदना"
"पर्यावरण एवं सामाजिक संवेदना"
मापनी-१६-१४ पर यति।
भाँति-भाँति के रोग बाँटता, दृष्टि अमंगलकारी है।
दूषित पर्यावरण चतुर्दिक, छाया संकट भारी है।
(1)
नदी चली उद्गम से पावन, कल-कल करती इठलाती।
जीव-जगत की प्यास बुझाती, पुण्य धरा को सरसाती।
अनगिन खुले कारखानों ने, विष पानी में घोल दिया।
अमन-चमन को किया प्रदूषित, द्वार, मृत्यु का खोल दिया।
इसे नियंत्रित करना होगा, यह घातक बीमारी है।
(2 )
कचरा हम सब बिखराते है, गली, सड़क,चौबारों में।
मक्खी-मच्छर पनप रहे हैं, घर-आँगन, दीवारों में।
डेंगू ,हैजा,दमा रोग या, फिर मलेरिया हो घातक।
खानपान परिवेश प्रभावित, लोक स्वच्छता में बाधक।
उचित प्रबंधन के अभाव में, वसुधा दीन दुखारी है।
(3)
पॉलीथीन मुक्त हो भारत, चलो स्वप्न साकार करें।
बंजर हुई धरा में आओ, मिलकर धानी रंग भरें।
मृदा, पवन, नदिया, पनघट को, स्वच्छ हमें ही रखना है।
हम सबका कर्तव्य प्राथमिक, इस विपत्ति से बचना है।
धरती माता की हम सब पर, पल-पल बढ़ी उधारी है।
(4)
घर-घर में शौचालय-सुविधा, हर घर में खुशहाली हो।
हरे-भरे हों बाग-बगीचे, मुस्काता हर माली हो।
रखें पटाखों से हम दूरी, दीप जलाएँ माटी के।
करें नियम पालन शुचिता की, हम पावन परिपाटी के।
खुद अपना कर्तव्य करें हम, सत्ता तो गांधारी है।