'स्त्री"
'स्त्री"
नारी भोली गाय है, ये मत समझो आप।
उसमें दुर्गा,लक्ष्मी, सरस्वती की छाप।।
सरस्वती की छाप, भरम मत मन में पालो।
देख सुकोमल गात,दृष्टि कुत्सित मत डालो। '
नीर' कभी वह फूल,कभी तलवार दुधारी।
सृजन और संहार, निभाती दोनों नारी।।
नारी' माँ, अर्धांगिनी, बेटी, भगनी, मित्र।
सब रूपों में सन्निहित, प्रेम भाव का इत्र।।
प्रेम भाव का इत्र,लुटा घर स्वर्ग बनाती।
दे ममता की छाँव,सदा जीवन महकाती।।
बनिता अबला नहीं, आज वह सब पर भारी।
करो मान-सम्मान, बढ़ेगी आगे नारी।।