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Virendra Bharti

Abstract Tragedy

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Virendra Bharti

Abstract Tragedy

मैं नारी हूं

मैं नारी हूं

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परिवार तेरा मैं संभालू ,

घर को तेरे स्वर्ग बनालूं

तुझपे ढ़ेरो प्यार लुटा लूं;

उसके बदले थोड़ा मैं भी चाह लूं


कांटो पर भी चलती जाऊं,

दिन-रात मेहनत करती जाऊं

धन - दौलत ना मैं जानूं;

बस तुझको अपना मानूं


तेरे लिए मैं मंगल गाऊं ,

भोजन तेरा मैं पकाऊं

वंश तेरा मैं बढ़ाऊं;

उम्मीद तुझसे मैं इतनी लगाऊं


साथ सुरक्षा दोनों चाहूं,

हर जन्म मैं तुझको पाहूं

प्यास सम्मान की थोड़ी जगाऊं;

जीवन तुझपे वारी जाऊं।


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