लालच
लालच
मंजिल पाने निकले थे
रास्ते हमें ललचाते रहे
हकीकत से दूर भागते रहे
खुली आंखों से सपने देखते रहे
आज जो भी था भाया नहीं
आने वाले कल के पीछे भागते रहे
आज कुछ भी किया नहीं
तकदीर पर आँसू बहाते रहे
दुनिया के उजालों खातिर
छोटे छोटे दीये बुझाते रहे।
