लाल बत्ती
लाल बत्ती
शहरों की इस चकाचौंध में
शाम-सवेरे कड़ी दोपहर में
कुछ चहेरों को उतरे देखा
“लाल बत्ती” जिनकी, जीवन रेखा।।
बिना छत के रात गुजारे
भू-धरा पर सोते, देखा
कभी छोटे-छोटे बच्चो के संग
कभी नशे में डोलते देखा।।
सामान बेचते कभी भीख मांगते
आते-जाते उनकों देखा
क्या से क्या बना देती है,परिस्थिति
वक़्त बदलते हमनें देखा।।
पीने को पानी नहीं
ना नहाये कभी उनको देखा
रूखी-सुखी खा करे गुजारे
रोटी का मोल उनसे सीखा।।
ना कपड़ो की उनकों चिंता
दो चीथड़ों में लिपटे देखा
ना कोई है उत्सव उनका
ना खुशी मनाते देखा।।
हर लाल बत्ती पर उनको देखा
पर उनके बारे कुछ ना, सोचा
इतनी योजना बनी, सरकार में
पर उनके खातिर ना कुछ होते देखा।।