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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics Inspirational

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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics Inspirational

☆क्यूँ बाँटते हो☆ ********

☆क्यूँ बाँटते हो☆ ********

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क्यूँ बाँटते हो

आखिर समाज में

आसपास स्थित 

इन घरों को

क्यूँ बाँटते हो।।


इन्हे रहने दो

आपस में मिलकर 

हँसने दो इन्हें 

फूलों सा खिलकर,

होने दो इन्हें 

एक दूसरे के


हँसी गम में शामिल 

इन्हें बाँटकर है

तुम्हे क्या हासिल,

अपने सत्ता,अपने लाभ

के खातिर 

इन्हें क्यूूँ बाँटते हो।।


सोचो यह भी तो

होगा क्या तब

जब भिड़कर आपस मेें

ये गर्त हो जाऐंगें


धरती रोएगी

रोएगा आकाश 

और हँस तो 

तुम भी न पावोगे

क्योंकि तब ये सब

तुम्हारे कदम से मिलाने


कदम पास न आऐंगें,

चेतना पर घिर आए अपने

इस अंधेेेरे से

दूर कयूूँ नही जाते हो

अपने निश्चिन्त अनिश्चिन्त

जीत की खातिर 

इन्हें कयूँ बााँटते हो।।


ये लाखों में

तुमको ही चुनेंंगें

जब संंग इनके

मिलकर तुम कहोगे

आओ हम हमारे लिए 

उन्नति के सपने बुनेेंगेें,


जब तुुुम छोड़

खुद का सोचना

इनके उत्थान का सोचोगे

तो निश्चित ये भी

तुम्हारे मान का सोचेंगें,

छोड़ो बाँटना


मत बाँटो

जाति अपनी 

अपने लिए मत छांटों

सब अपने धन जन

सबको बस अपना जानो


खुद से अलग

इनको क्यूँ जानते हो,

समाज के इन घरों को

आखिर क्यूँ बाँँटते हो

क्यूँ बाँटते हो।


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