क्योंकि, तू जो नहीं है.....
क्योंकि, तू जो नहीं है.....
लाख दिये जलाकर भी ना जाये,
साजन तेरी देहलीज का अंधेरा,
आंगन मे रहती चहल पहल,
पर साजन तेरे बिना सदा सूना ,
लाख जतन करूँ, ना जाये तन्हाई,
जाने कैसे टूटेगी ये कमरे की खामोशी,
नीरस अब ये जिंदगी हो गयी,
क्योंकि तू जो नहीं है,....
अब धानी चुनरी सावन से रूठ गयी,
अब हरी चूड़ियाँ भी भूली बिसर गयी,
अब बौछारों की बूँदों मे आनंद कहाँ,
अब रिमझिम गिरती बरसात मदहोश कहाँ,
अब तो जीवन बस जल की धारा,
क्योंकि तू जो नहीं है.....
अब इस जीवन की कोई कहानी नहीं,
रंग हीन पुष्प की अब ये बेजुबानी सही,
जीवन की साँसों की लड़ियाँ गिनती हूँ,
कुछ भूलती हूँ कुछ यादें करती हूँ,
दुःख दर्द मे निपट अकेली रहती हूँ,
अब ना अपने लिए किसी की राह देखा करती हूँ,
क्योंकि तू जो नहीं है.....
