क्योंकि तुम कविता नहीं लिखते
क्योंकि तुम कविता नहीं लिखते
तुम नहीं समझोगे
क्या कहती है रात की तन्हाई
तारों की ख़ामोशी भी करती है बातें
तुम नहीं समझोगे
चाँद कैसे बिखेर देता है दूधिया हँसी
आसमां भी होता है व्याकुल
धरती से एक मुलाकात के लिए
पर तुम नहीं समझोगे
सुबह की ठंडी हवा जब
तन को छूकर गुजरती है
पत्तों पर ओस की बुँदें जब चमकती है
चिड़िया भी ची ची कर कुछ गाती है
फूल भी हँसते हैं और
हवा भी गुनगुनाती है
पर तुम नहीं समझोगे
बच्चों की मासूम हँसी
उनकी तोतली बोली
उनकी आँखों में तैरते सपने
बारिश की बूंदों को
तुम नहीं समझोगे
छोटी-छोटी बातें कितनी खुशियाँ देती है
एक ज़रा सी बात आँखे नम कर देती है
कभी कभी आँखे भी कुछ कहती है
पर इन आँखों की जुबां को
तुम नहीं समझोगे
तुम नहीं समझोगे
क्योंकि तुम कविता नहीं लिखते...