क्यों करता है इंसान?
क्यों करता है इंसान?
इस दुनिया में हर जगह भरा पड़ा है इंसान
फिर भी क्यों हर वक़्त तन्हा है इंसान।
खुद को सबसे आगे रखने की होड़ में
खुद को ही पीछे छोड़ता रहा है इंसान।
यूं तो चांद तारों तक पहुंच बना लिया
कुदरत के आगे फिर क्यों लाचार है इंसान।
मेहनत करके जरूरतें तो हो जाती हैं पूरी
फिर चंद सिक्कों में खुद को क्यूं बेचता है इंसान।
हर जगह हर वक़्त बड़बोलेपन दिखलाता है
फिर खुद ही छोटी सोच क्यों रखता है इंसान।
कहता है कि ये दुनिया ईश्वर के अधीन है
फिर खुद को ही खुदा क्यों समझता है इंसान।
