क्या यही प्यार है
क्या यही प्यार है
बड़ी शिद्दत से थामा था हाथ उनका,
दुआओं में मांगा था साथ उनका
दो पल की खुशी भी न दी,
दे दिए ग़म चार है
क्या यही प्यार है
ख़ुशियाँ तो न बख़्शी,
ग़मों की सौगात बख़्श दी
रह गए एहसास तड़प के,
झूठे ख्वाबों की अता बख़्श दी
दिल ख़ुद से रोता जार-जार है
क्या यही प्यार है
दिल लगाया जज़्बात से खेला,
दे दिया उदासियों का रेला
मुँह मोड़ के तन्हा छोड़ा,
कर दिया महफ़िल में अकेला
सही नहीं जाती तिश्नगी की मार है
क्या यही प्यार है।।
,

